Haye re Muhobbat - 1 in Hindi Love Stories by Baalak lakhani books and stories PDF | हाय रे मुहब्बत - 1

Featured Books
Categories
Share

हाय रे मुहब्बत - 1

मेरे सभी दोस्तों को मेरा नमस्कार और ढेर सारा प्यार, आप सभी के सहयोग और प्यार की वज़ह से मुजे और लिखने की प्रेरणा मिलती है, मेरे आसपास घटी कहनी को आपके सामने पेश करने का आनन्द आता है, और उन किस्से से आप कुछ राय पेश करे और समाज मे घटे किस्सों पर आप अपनी विचारधारा को बया करे और, उनसे कुछ नए विचार और बदलाव का कोई व्यक्ती पर असर हो बस यहि उदेश्य है,
काफी महीनों से मेरी कलम मुझसे रूठ गई थी या मे खुद लिखने को प्रेरित नहीं होता था, या फिर एसे किस्से मेरे कानो तलक पहुचे नहीं थे जो आप सबको पढ़ने के लिए दे सकू.
वेसे तो मे आप सभी का धन्यावादी हू सदा, तो भी मे आप सबका धन्यवाद फिरसे कर रहा हूं, आज कल मे जिस प्रदेश मे हू वहा के पहाड़ों ने साँप की खाल की तरह अपनी हरियाली गरमी मे छोड़ दी थी पर हमारे ब्रह्मांड के रचता कि रचना के आगे किसीका जोर नहीं, उसी पहाड़ों पे लगे नीम के पेड़ों ने अपना जलवा बिखरते हुवे फटी हुई ही सही पर चादर ओढादी है, साफ सुथरा रहेता आकाश आज काले काले बादलों की मुहब्बत मे गिरफ्तार हुवे जा रहा हे, और खुशी के आंसू बस गिरने ही वाला है, एसे आशिक मौसम मे मेरी कलम ने अंगड़ाई मरोड़ मेरी उँगलियों पर आ बैठीं है।तो कहानी है..
* फिर प्यार हो सकता है? तो कितना सही है और गलत?

मेरा दोस्त अविनाश खुद का बिजनैस डूब जाने की वज़ह से नोकरी पर लग गया था, और लग जाना ही उसके जीवन के लिए बहतर था, परिवार की जिम्मेदारी जो उसी के सर पर थी, और कोई हाथ भी उसके हिस्से मे नही थे जो उसकी आर्थिक विडंबना मे सहारा हो सके, तनखा 15000/थी जो घर चलाने के लिए काफी कम थी, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई बीबी की शापिंग और डिमांड कम हो ही नहीं रही थी, बेचारे का मन उदास और अतृप्त रहा करता था, कभी कभी उसकी जुबान साथ नहीं देती थी तो मेरे सामने फिसल कर हालत बया कर देती थी, और कभी कभी उसके कोंपल पर पडी झुर्रियां हालत और उसके आत्मा की कंपन को मेरे सामने दम तोड़ दिया करती थी.
जिस ऑफिस मे अविनाश काम कर रहा था, उसी ऑफिस मे एक छोटी सी मासूम लड़की ने जॉइन किया एक क्लर्क की जगह पर, जिसे आने वाले लोगों को चाय पानी और साफ सफाई की जिम्मेदारी दी गई थी, नाम था प्रतिभा जेसा नाम वैसी ही दिखती थी, गोल मुख, आंखे बड़ी और मासूमियत से भरी पर चंचल सी, ऊंचाई मे कम थी पर ख़ूबसूरती मे ऊंची, गजगामिनी
की चाल मद मस्त चलती थी, एक बार देखे तो देखते ही रहे, और देखने वालो को प्यार नहीं होगा तो क्या होगा एसी थी.

अविनाश और प्रतिभा का केबिन अलग थे पर एसा था कि अविनाश के आँखों के सामने प्रतिभा की मेज रहती थी, तो आंखे का टकराव बहुत ज्यादा रहेता था जाहिर सी बात है , मुंडी नीचे कर के पूरा दिन तो इंसान नहीं बेठे रहेता, कभी चाय तो कभी पानी कोई ना कोई बहाने से दोनों मे बाते कॉमन सी होती रहती थी दोनों मे, अविनाश नोटिस करता था प्रतिभा फोन पर ज्यादा लगी रहती थी बाते करने के लिए.
थोड़े दिन के बाद उससे रहा नहीं गया तो पूछ लिया, ये जो इतनी बाते करती है किस्से करती हो?
प्रतिभा ने हस्ते हुवे उतर दिया मेरी सहेली हे उससे.
अविनाश ने मान तो लिया पर ना जाने क्यों उसे प्रतिभा के जबाव में संतुष्टि नहीं मिली और उत्सुकता ज्यादा बढ़ने लगी, कई केबिन से बाहर निकलते वक़्त बाते उसके कानो मे भी पडी, ये बाते सहेली वालीं नहीं थी, तो उससे रहा नहीं गया तो, पूछ लिया फिरसे सची सच्ची बताओ कौनसी सहेली हे जो इतनी वैली बेठी है? ये सहेली के भेष मे कोई चुनरी डाला हुआ कोई मिया जान लगता है.
प्रतिभा के शर्मा कर गाल लाल कर बैठी अपनी पलके झुकाते हुवे , अविनाश समज गया के बंदी प्यार मे हे, फिर क्या था बातों का सिलसिला और जोरों से चल प़डा दोनों मे, अविनाश प्यार मे नही मानता था, प्रतिभा जब भी अपने प्रीतम की बात करती तो अविनाश नुकस निकालता रहेता, और प्रतिभा अटल रहती की सच्चा वाला प्यार हे हम दोनों का, एसी नोक जोक चलती दोनों की.
अविनाश प्रतिभा को ट्रेनिंग देने लगा के कि छोटे घर से हे तो कुछ सीख लेगी तो दो रुपए ज्यादा आमदनी बढ़ेगी, और उसका निर्वाह अच्छी तरह से गुजरने लगेगा,
एक दिन अविनाश ने प्रतिभा से पूछा क्या करता हे तुम्हारा प्यार,
प्रतिभा : वोह एक कम्पनी मे सुपरविजन की जॉब पर हे.
अविनाश : ओह अच्छी बात है, कितनी तनखा हे?
प्रतिभा : 4500/ हे.

अविनाश थोड़ी देर चुप रहा कुछ सोचने के बाद वापिस पूछ लिया.
अविनाश : क्या तुम्हें यकीन हे कि इतने कम तनखा मे गुजारा हो पाएगा?

प्रतिभा :क्यु नहीं अगर दो लोग समझदारी और प्यार से रहते हैं तो हो सकता है, पर हमे कहा शादी करनी है.

ये बात सुनकर अविनाश तो अचंभित हो गया ये केसा प्यार हे? जिसमें शादी नहीं करनी.
अविनाश : क्या तुम शादी नहीं करोगे?
प्रतिभा : हाँ हम शादी नहीं करने वाले,उसने मुजे पहेले ही बता दिया था कि देखों आगे बढ़े उससे पहेले मे तुम्हें बता दु की तुम्हारी और मेरी जाती अलग अलग हे, और मेरे घरवाले बहुत ही रूढ़िवादी है, वोह दूसरी जाति की बहू स्वीकार नहीं करेंगे अगर तुम्हें ये मंजूर हो तो ठीक है वर्ना हम दोस्त ही अच्छे हें.
अविनाश फिर अचंभित हो गया बड़ा ग़ज़ब का दोर हे? एसा भी होता है? प्यार करो पर जिंदगी साथ नहीं बिताने की. मन ही मन बात करके फिर बोला.

अविनाश : तुम्हें इस बात का कोई रंज नहीं? तुम नहीं चाहती कि तुम जिसे चाहो वोह आखिरी साँस तक तुम्हारे साथ रहे?
प्रतिभा : कोन नहीं चाहता? मे भी चाहती हूं, पर क्या करे ऊपर वाले को ये मंजूर ही नहीं हमारा एक होना.

अविनाश ठहाका लगाए हसने लगा और बोला ग़ज़ब हे, इश्क तुम करो, फेसले तुम लो और दोष ईश्वर पे डाल दो वाह रे मॉर्डन ज़माने का इश्क तू कमाल है, इश्क इंसान करे खामियाज़ा उपरवाला भुगते?
ये बात प्रतिभा को अच्छी नहीं लगी उसके चहरे का रंग बदल गया था, कतराती आँखों से घडी भर के लिए अविनाश को देखती रही, फिर कुछ रजिस्टर निकाल कर कुछ लिखने लगी, अविनाश ने बात आगे करने की कोशिश की पर प्रतिभा ने कुछ ध्यान नहीं दिया, वोह अपने काम मे लगे रहने का नाटक करते रही. फिर अविनाश ने भी प्रयास छोड़ के लेपटोप पर कुछ करने लगा, थोड़ी थोड़ी देर नजर प्रतिभा की ओर दौड़ा दिया करता था तो वहीं नाटक बरकार था, पूरे दिन काम के अलावा कुछ बात नहीं हुई और शाम हो गई ऑफिस बंध करने का वक़्त हो गया, ऑफिस बंध करते वक़्त अविनाश ने प्रतिभा को कहा मेरी सुबह वालीं बातों का बुरा लगा हो तो मुजे माफ करना, मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाना नहीं था, पर मेरे जो विचार हे लोगों को लेके, जो मेने देखे हैं, उसके अनुभवों को देख कर ही बोल दिया था,

प्रतिभा : कोई बात नहीं ये आपकी सोच हे, और आप मेरे उपरी अधिकारी हे, मुजे आपकी बात सुननी होती है, आपसे बहस नहीं कर सकती, ठीक हे मे चलती हू मुजे लेट हो रहा हे, और मेरी वालीं चाबी मुजे दे दीजिए.
अपनी चाबी ले कर फटक से दरवाजा खोलते हुए बाहर निकल गई.

क्रमशः......

आपके विचार जरूर दे कहनी के बारे में, मे आपका आभारी हू आप मेरी कहानी पढ़ते हो और मुजे और लिखने की प्रेरणा मिलती है